Sunday, February 10, 2013

Soonapan

" मै तुम्हारे बिन वैसे ही सूना हूँ "

 

जैसे मंजनू बिन लैला के,
                  राँझा जैसे हीर बिना,
जैसे माही बिन सोनी के,
                  हो फ़रहाद भी शीर बिना ।
जैसे दीपक बिन ज्योती के,
                  जैसे जीव शरीर बिना,
जैसे शफरी बिन पुष्कर के,
                  जैसे ज़िन्द समीर बिना ।
जैसे म्यान हो बिन कटार के,
                 तरकश जैसे तीर बिना,
जैसे बादल बिन बरखा  के,
                  सागर जैसे नीर बिना ।
जैसे वनिता बिन भूषण के,
                 काया जैसे चीर बिना,
जैसे भूखा बिन रोटी के,
                  जैसे शीश कुटीर बिना ।
जैसे मन्नत बिन ईश्वर के,
                  जैसे दुआ फ़कीर बिना,
जैसे मुरली बिन अधरों के,
                  जैसे हस्त लक़ीर बिना ।
जैसे नंदन बिन वारिस के,
                 सेवक जैसे मीर बिना,
जैसे खुशियाँ बिन अपनों के,
                  बिछड़न जैसे पीर बिना ।
दीवाली बिन दिया जलाये,
                   होली रंग अबीर बिना,
उपन्यास बिन हरिश्चंद के,
                  दोहा संत कबीर बिना ।
जैसे नैना बिन ख़्वाबों के,
                 यादें हो तस्वीर बिना,
वैसे तुम बिन मै हूँ जैसे,
                भारत हो कश्मीर बिना ।

1 comment:

  1. kah sakte hae ki kavi abhi bhi jinda hae hamare Bharat Desh ke Javano Me...................

    ReplyDelete