" मै तुम्हारे बिन वैसे ही सूना हूँ "
जैसे मंजनू बिन लैला के,
राँझा जैसे हीर बिना,
जैसे माही बिन सोनी के,
हो फ़रहाद भी शीर बिना ।
जैसे दीपक बिन ज्योती के,
जैसे जीव शरीर बिना,
जैसे शफरी बिन पुष्कर के,
जैसे ज़िन्द समीर बिना ।
जैसे म्यान हो बिन कटार के,
तरकश जैसे तीर बिना,
जैसे बादल बिन बरखा के,
सागर जैसे नीर बिना ।
जैसे वनिता बिन भूषण के,
काया जैसे चीर बिना,
जैसे भूखा बिन रोटी के,
जैसे शीश कुटीर बिना ।
जैसे मन्नत बिन ईश्वर के,
जैसे दुआ फ़कीर बिना,
जैसे मुरली बिन अधरों के,
जैसे हस्त लक़ीर बिना ।
जैसे नंदन बिन वारिस के,
सेवक जैसे मीर बिना,
जैसे खुशियाँ बिन अपनों के,
बिछड़न जैसे पीर बिना ।
दीवाली बिन दिया जलाये,
होली रंग अबीर बिना,
उपन्यास बिन हरिश्चंद के,
दोहा संत कबीर बिना ।
जैसे नैना बिन ख़्वाबों के,
यादें हो तस्वीर बिना,
वैसे तुम बिन मै हूँ जैसे,
भारत हो कश्मीर बिना ।
जैसे मंजनू बिन लैला के,
राँझा जैसे हीर बिना,
जैसे माही बिन सोनी के,
हो फ़रहाद भी शीर बिना ।
जैसे दीपक बिन ज्योती के,
जैसे जीव शरीर बिना,
जैसे शफरी बिन पुष्कर के,
जैसे ज़िन्द समीर बिना ।
जैसे म्यान हो बिन कटार के,
तरकश जैसे तीर बिना,
जैसे बादल बिन बरखा के,
सागर जैसे नीर बिना ।
जैसे वनिता बिन भूषण के,
काया जैसे चीर बिना,
जैसे भूखा बिन रोटी के,
जैसे शीश कुटीर बिना ।
जैसे मन्नत बिन ईश्वर के,
जैसे दुआ फ़कीर बिना,
जैसे मुरली बिन अधरों के,
जैसे हस्त लक़ीर बिना ।
जैसे नंदन बिन वारिस के,
सेवक जैसे मीर बिना,
जैसे खुशियाँ बिन अपनों के,
बिछड़न जैसे पीर बिना ।
दीवाली बिन दिया जलाये,
होली रंग अबीर बिना,
उपन्यास बिन हरिश्चंद के,
दोहा संत कबीर बिना ।
जैसे नैना बिन ख़्वाबों के,
यादें हो तस्वीर बिना,
वैसे तुम बिन मै हूँ जैसे,
भारत हो कश्मीर बिना ।
kah sakte hae ki kavi abhi bhi jinda hae hamare Bharat Desh ke Javano Me...................
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